Wednesday, July 4, 2007

अनूठे शोध की दुनिया में आपका स्‍वागत है


आईएएस (भारतीय सिविल सेवा) बनने की कल्पना, पीसीएस (प्रादेशिक सिविल सेवा) होने का सुख। कुछ नहीं तो वकील या फिर मास्टर। सपने दर सपने। सपने सच होते हैं, टूट भी जाते हैं, मगर इन्हें देखने का क्रम नहीं टूटता। 20 से 30 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से हिचकोले खाती दौडती रेल में सपनें कई हजार किलोमीटर प्रतिसेकेंड की चाल से दौडते हैं।

जंघई, एक बेहद अहम जंक्‍शन। लेकिन यहां ढंग के प्‍लेटफार्म तक नहीं हैं।


इलाहाबाद के प्रयाग स्‍टेशन का प्‍लेटफार्म। सुबह के छह बजे। नजारा देखिए। साइकिल आम बात है मोटरसाइकिल भी यहां फर्राटे से दौडती है।


चलिए रेल आ गई


आग रोकने की अपील। लेकिन रेल के भीतर। न जाने कितने सिलेंडर, स्‍टोव और पटाखे ढोए जा रहे हैं।


जरा सुस्‍ता लूं


अपनी एजे यानि इलाहाबाद-जौनपुर पैसेंजर


सब फर्जी है


स्‍वीकार करें


कमबख्‍त चेन खींच नहीं, उखाड ले गए


ओफोफ पंखा भी गायब


हाय रे मुहब्‍बत


ट्यूबलाइट कहां गई मुझसे मत पूछिए


पानी कहां गिरेगा। डिब्‍बे में। बेसिन तो भाई लोग ले गए।


माताजी को चढने दीजिए


बेटा, कहां नजर है, माताजी के झोले पर


हटो भाई, अंकल साइकिल भी अंदर ही लाएंगें


स्‍टेशन मास्‍टर साहब का झाम उर्फ अंग्रेजों के जमाने की संचालन मशीन


नीचे कर्जन पुल, ऊपर रोड


कभी यहां भी रौनक थी, वीरान कर्जन पुल


कर्जन पुल का एक गेट। मोतीलाल, इसका एक और नाम। जो पुल के साथ ही मिट चुका है


कर्जन पुल का एक खंभा। मुहब्‍बत के बारे में क्‍या कहूं


पुल का बाहरी हिस्‍सा। जहां से पटरियां उखाड ली गईं


अब इतिहास। पुल के शुरुआत से जुडी जानकारी


पुल पर पटरियां। साइड में देखिए मेंटनेंस के लिए कोई जगह नहीं है।


पुल की छत


कर्जन को खत्‍म करने वाला दूसरा रेल पुल


गंगा का सूखा पाट और कर्जन पुल


सही सलामत


पुल से पटरियों का नामोनिशा मिटाया जा रहा है


उफफफफफफफफफफ, इतनी बडी सीख